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बाल गंगाधर टिलक (Bal Gangadhar Tilak) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता थे। वह 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में जन्मे थे और 1 अगस्त, 1920 को मुंबई में निधन हुए। टिलक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अग्रणी भूमिका निभाई और उन्हें "लोकमान्य" का ताज प्राप्त हुआ।
टिलक को महात्मा गांधी के साथ-साथ भारतीय नेतृत्व के पहले तीन स्तंभों में से एक माना जाता है। उन्होंने स्वराज की मांग को लोगों तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण भाषा मराठी का प्रयोग किया और "स्वराज्य हमारी जन्मसिद्ध अधिकार है, और हमें उसे प्राप्त करना होगा" जैसे प्रसिद्ध नारे दिए। उनका एक और महत्वपूर्ण नारा था "तिलक तराजू" जिसका अर्थ था कि धार्मिक एकता के लिए सभी धर्मों के प्रतिनिधि बाल गंगाधर टिलक ने एकत्र कर लिए हैं।
टिलक को महाराष्ट्र की आन्दोलनात्मक विचारधारा का प्रवर्तक माना जाता है, जिसे "तिलकवाद" कहा जाता है। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया और 1894 में दहेज प्रथा के खिलाफ विरोध करने के लिए "श्रीमंत पुरुष" नाटक लिखा।
टिलक को ब्रिटिश सरकार द्वारा कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्हें कई बार अलग-अलग कारावास में रखा गया। उन्होंने 1908 में महात्मा गांधी के समर्थन में "कॉंग्रेस" पार्टी का नेतृत्व किया और स्वाराज्य के लिए आंदोलन चलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
टिलक का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण है और उन्हें एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी दृढ़ विश्वासी और साहसिक व्यक्तित्व ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लोगों के बीच एक प्रतिष्ठित नेता बनाया।
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